Madhu varma

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लेखनी कविता - रोते-हँसते - कुंवर नारायण

रोते-हँसते / कुंवर नारायण


जैसे बेबात हँसी आ जाती है
हँसते चेहरों को देख कर

जैसे अनायास आँसू आ जाते हैं
रोते चेहरों को देख कर

हँसी और रोने के बीच
काश, कुछ ऐसा होता रिश्ता
कि रोते-रोते हँसी आ जाती
जैसे हँसते-हँसते आँसू !

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